जगन्नाथ पुरी भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों (चार धाम) में से एक है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ की एकादशी का पर्व भी अत्यंत विशेष माना जाता है। जगन्नाथ पुरी में एकादशी के दिन चावल खाने की एक विशेष परंपरा है, जिसे "उल्टी एकादशी" भी कहा जाता है। आमतौर पर एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना जाता है, लेकिन जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को एकादशी के दिन चावल का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में भक्तों को भी बांटा जाता है।
यह परंपरा एक पौराणिक कथा से जुड़ी है। कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मदेव भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद ग्रहण करने की इच्छा से पुरी पहुंचे, लेकिन तब तक महाप्रसाद समाप्त हो चुका था। एक पत्तल में कुछ चावल के दाने बचे थे, जिन्हें एक कुत्ता चाट रहा था। ब्रह्मदेव भक्ति भाव में इतने लीन थे कि उन्होंने कुत्ते के साथ बैठकर उन चावलों को खाना शुरू कर दिया। जिस दिन यह घटना हुई, वह संयोग से एकादशी थी। ब्रह्मदेव को इस तरह चावल खाते देख भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए और उन्होंने एकादशी माता से कहा कि जगन्नाथ पुरी में उनके प्रसाद पर किसी भी व्रत या तिथि का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए, जगन्नाथ पुरी में एकादशी के दिन भी चावल खाए जाते हैं।
एकादशी, हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने में दो बार आती है — शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है और व्रत रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।
पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहाँ की एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान को विशेष भोग अर्पित किए जाते हैं और कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल पक्ष): इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं।
देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल पक्ष): इस दिन भगवान जागते हैं, और इस दिन से ही शुभ कार्य जैसे विवाह आदि शुरू हो जाते हैं।
पुरी में इन एकादशियों को विशेष भव्यता के साथ मनाया जाता है। जगन्नाथ मंदिर में रात भर भजन, कीर्तन, और विशेष पूजा होती है।
व्रती लोग उपवास रखते हैं और केवल फलाहार या जल पर रहते हैं।
भगवान जगन्नाथ को विशेष श्रृंगार किया जाता है।
रथ यात्रा से पहले या बाद की एकादशी पर मंदिर में विशेष दर्शन की भी व्यवस्था होती है।
भक्तगण पूरी रात जागरण करते हैं और कीर्तन में भाग लेते हैं।
जगन्नाथ पुरी में एकादशी का अनुभव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और भगवान से जुड़ने का एक मार्ग है। इस दिन का व्रत और भक्ति इंसान के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है।
निष्कर्ष
जगन्नाथ पुरी की एकादशी न केवल एक व्रत का दिन है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, भक्ति की गहराई और भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर श्री जगन्नाथ के दर्शन और सेवा का जो पुण्य फल मिलता है, वह जीवन के समस्त दुखों और कष्टों को हरने वाला होता है।
पुरी में एकादशी का अनुभव भक्तों को अध्यात्म के उस स्तर तक पहुंचाता है जहाँ वे अपने अस्तित्व को भगवान में विलीन होते हुए महसूस करते हैं। चाहे आप व्रत रखें, भजन गाएं या केवल मंदिर में दर्शन करें — यह दिन आपके जीवन में एक दिव्य ऊर्जा का संचार जरूर करेगा।
आइए, इस एकादशी पर भगवान जगन्नाथ के चरणों में अपने मन, वचन और कर्म अर्पित करें और उनसे जीवन में शांति, सद्गति और भक्ति की शक्ति प्राप्त करें।