श्रीजानकी-मङ्गल गोस्वामी तुलसीदास रचित एक महत्वपूर्ण काव्य है, जो माता सीता (जानकी) और श्रीराम के विवाह की पवित्र कथा को संगीतमय रूप में प्रस्तुत करता है। यह काव्य भारतीय भक्ति साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखता है। मङ्गलाचरण इसका प्रारंभिक अंश है, जिसमें कवि देवी-देवताओं की वंदना और शुभ कार्य के निर्विघ्न पूर्ण होने के लिए प्रार्थना करते हैं।
मङ्गलाचरण का उद्देश्य पाठ के आरंभ में शुभता की स्थापना करना है। तुलसीदास जी अपनी प्रत्येक रचना की शुरुआत मङ्गलाचरण से करते हैं। श्रीजानकी-मङ्गल के मङ्गलाचरण में उन्होंने श्रीराम, माता सीता, गुरुजनों और समस्त दिव्य शक्तियों को स्मरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की विनती की है। यह मङ्गलाचरण इस रचना को पवित्र और शुभता से परिपूर्ण बनाता है।
श्रीजानकी-मङ्गल में तुलसीदास जी ने विवाह संस्कार को दिव्य रूप में चित्रित किया है। मङ्गलाचरण से शुरू होकर यह काव्य माता सीता के जन्म से लेकर उनके विवाह तक के हर प्रसंग को अत्यंत हृदयस्पर्शी और कलात्मक भाषा में प्रस्तुत करता है। विशेषकर सीता और राम के मिलन को अद्भुत और अलौकिक रूप में वर्णित किया गया है।
मङ्गलाचरण में न केवल काव्यात्मक सौंदर्य है, बल्कि इसमें गहन भक्ति भावना और आध्यात्मिकता भी छिपी है। तुलसीदास जी ने इसे केवल काव्य तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक भी बनाया है। यह मङ्गलाचरण पाठक को आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रेरित करता है।
तुलसीदास जी की भाषा अत्यंत सरल, भावनात्मक और हृदयग्राही है। उनकी रचनाएँ जनमानस में भक्ति और प्रेम का संचार करती हैं। श्रीजानकी-मङ्गल के मङ्गलाचरण में प्रयुक्त शब्द, छंद और अलंकार पाठकों को आकर्षित करते हैं और उनकी भक्ति को जाग्रत करते हैं।
श्रीजानकी-मङ्गल का मङ्गलाचरण भारतीय संस्कृति, साहित्य और भक्ति परंपरा का एक अनमोल रत्न है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें जीवन के गूढ़ आध्यात्मिक संदेश भी छिपे हैं। तुलसीदास जी के इस मङ्गलाचरण में भक्त के हृदय की वेदना, भगवान के प्रति प्रेम और जीवन की शुभता का सुंदर चित्रण किया गया है। यह रचना सदियों से भक्तों के लिए प्रेरणा और श्रद्धा का स्रोत बनी हुई है।