हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले में स्थित त्रिलोकनाथ मंदिर एक अद्भुत धार्मिक स्थल है, जहाँ आस्था, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का अनोखा संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2,760 मीटर की ऊँचाई पर, चंद्रा नदी के किनारे तंद्रा गाँव के पास स्थित है। यहाँ की शांति, आध्यात्मिक माहौल और चारों ओर फैले बर्फ़ से ढके पर्वत श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को ही आकर्षित करते हैं।
त्रिलोकनाथ मंदिर हिंदू और बौद्ध – दोनों धर्मों के लिए समान रूप से पवित्र है। हिंदू इसे भगवान शिव का मंदिर मानते हैं, जबकि बौद्ध इसे आर्य अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) का पवित्र स्थान मानते हैं। इस कारण इसे “चंद्रभागा घाटी का कैलाश” भी कहा जाता है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु बिना किसी धार्मिक भेदभाव के पूजा-अर्चना करते हैं, जो इसे धार्मिक सद्भाव का प्रतीक बनाता है।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप सैकड़ों वर्षों पुराना है, लेकिन इसके बारे में कई स्थानीय लोककथाएँ प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती ने इस स्थान को अपने निवास के लिए चुना था। बौद्ध ग्रंथों में भी इस स्थल का उल्लेख मिलता है, जो इसे तिब्बती संस्कृति से जोड़ता है।
मंदिर की वास्तुकला हिंदू और बौद्ध शैली का मिश्रण है। सफ़ेद रंग से रंगा हुआ मंदिर दूर से ही चमकता हुआ दिखाई देता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान त्रिलोकनाथ (शिव) की काले पत्थर से बनी सुंदर मूर्ति विराजमान है। मूर्ति के चारों ओर प्रार्थना चक्र (प्रेयर व्हील) लगे हैं, जिन पर बौद्ध मंत्र लिखे हैं। मंदिर के आस-पास रंग-बिरंगे प्रार्थना ध्वज लहराते रहते हैं, जो वातावरण को और भी पवित्र बना देते हैं।
हर वर्ष अगस्त माह में यहाँ पूरी नामक प्रसिद्ध मेला आयोजित होता है। इस मेले में लाहौल, स्पीति, किन्नौर और ज़ांस्कर के लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। मेले के दौरान धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और स्थानीय नृत्य देखने को मिलते हैं। यह समय मंदिर आने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
त्रिलोकनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए मनाली से रोहतांग दर्रा पार कर लाहौल घाटी में प्रवेश करना पड़ता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण रास्ता बंद हो जाता है, इसलिए यहाँ आने का सबसे उचित समय जून से सितंबर के बीच है। निकटतम प्रमुख कस्बा उदयपुर है, जो मंदिर से लगभग 9 किलोमीटर दूर है।
मंदिर से चारों ओर का दृश्य अद्भुत है—बर्फ से ढकी चोटियाँ, हरी-भरी घाटियाँ और बहती हुई चंद्रा नदी का संगम मन को मोह लेता है। यहाँ का वातावरण न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन के लिए भी उपयुक्त है।
त्रिलोकनाथ मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि यह धार्मिक एकता, शांति और प्रेम का प्रतीक है। चाहे आप भगवान शिव के भक्त हों या बौद्ध धर्म के अनुयायी, यह स्थान आपको एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव देगा। हिमालय की गोद में बसे इस पवित्र स्थल की यात्रा जीवनभर की यादों में बस जाती है।