Jul 07, 2025

रुद्र-संहिता भाग प्रथम

ॐ सत्यं शिवं सुन्दरम्
अथ द्वितीय रुद्र-संहिता प्रारम्भ

पहला अध्याय 


परम पौराणिक सूतजी से शौनकादि ऋषियों की वार्ताजो विश्व की उत्पत्ति, पालन और लय के एकमात्र कारण हैं, उन अनन्त कीर्तिवाले, गौरीपति, अचिन्त्यरूप वाले, निर्मल बोधस्वरूप, मायाश्रित किन्तु माया रहित शिवजी को मेरा नमस्कार है।

श्रीव्यासजी ने कहा कि शिवजी जगत् के पिता और शिवाजी (पार्वतीजी) माता तथा उनके पुत्र श्रीगणेशजी को नमस्कार कर मैं इस संहिता का वर्णन करता हूँ।

एक समय नैमिषारण्य में जब समस्त शौनकादि मुनियों ने परम भक्ति से सूतजी से यह प्रश्न किया कि शिवजी का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप क्या है और पार्वतीजी सहित उनका दिव्य चरित्र क्या है? 

लोक के कल्याणकर्त्ता श्रीशंकरजी किस प्रकार प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होने पर क्या फल देते हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश- ये तीनों देवता शिवजी के अंग से उत्पन्न हुए हैं और इनमें महेश ही पूर्णांश हैं तथा शिव-पार्वती का आविर्भाव और विवाह कैसे हुआ?

उनकी उन सब लीलाओं को हमें बताइये, तो परम पौराणिक सूतजी बोले- हे मुनीश्वरो इस उत्तम प्रश्न के लिए आप लोगों को धन्यवाद है, क्योंकि आप शिवनिष्ठों ने शिवजी की कथा सम्बन्धी तीन बड़े उत्तम प्रश्न किये हैं, जो सुनने वालों को गंगाजल की भाँति पवित्र करने वाले हैं। 

आपके प्रश्न के अनुसार शिवजी के चरित्र को यत्नपूर्वक मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहता हूँ, आप लोग आदर सहित सुनिये।

 जैसा प्रश्न आपने किया है ऐसा ही शिवजी से प्रेरित हुए श्रीनारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से यही प्रश्न पूछा था। 

तब शिव-भक्त ब्रह्माजी ने प्रसन्न हो अपने पुत्र नारदजी को हर्षित करते हुए शिवजी का यश-वर्णन किया था।

 श्रीव्यासजी कहते हैं कि जब सूतजी ने ऐसा कहा तो उनके इस वाक्य को सुन कर वे सब ब्राह्मण कुतूहल सहित उस संवाद को इस प्रकार पूछने लगे कि, हे सूतजी! हे महाभाग ! है शिवभक्तों में उत्तम बुद्धि वाले! यह ब्रह्मा और नारदजी का संवाद कब हुआ था, जिसमें भव-बन्धन से छुड़ाने वाली भगवान् शिव की लीला वर्णित है।

हे तात! उनके प्रश्न के अनुसार ही हमें वह सब प्रेम से सुनाइये। Test

 

 ॐ नमः शिवाय